Wednesday, 14 December 2016

सही , गलत या दोनों

मैंने अभी तक जीवन में जितना भी सीखा एवं समझा हैं  , उस आधार पे हमेशा चीजों को सरल एवं सुगम बनाने का  प्रयास किया हैं  , सभी कुछ सही और गलत के चश्मे से ही देखा एवं उनके आधार पर ही निर्णय लिए हैं ,
अगर मैं सही और गलत परिभासित करू तो ऐसा कोई भी काम जिस से किसी भी व्यक्तिविशेष का नुकसान ना हो उसको आज तक मैंने सही माना एवं इससे विपरीत कृत्य को गलत की संज्ञा दी हैं  | 

परन्तु जैसे जैसे जीवन में और बसंत देखता जा रहा हु वैसे वैसे लगता जा रहा हैं की मेरा सही किसी और का गलत भी हो सकता हैं , जोकि उस व्यक्ति की परिस्थति एवं प्रकृति पे निर्भर करता हैं , गाँधी जी ने बिलकुल सही कहा हैं की जो जैसा  होता हैं उसे समाज उसी की तरह का नजर आता हैं , उपर्युक्त लिखी हुई पंक्ति के माध्यम से मैं गाँधी जी को इसलिए घसीट लाया क्यूंकि मुझे ऐसा लगता था की हर व्यक्ति का स्वाभाविक गुण अच्छा एवं सच्चा होता हैं परन्तु इस पूंजीवादी समाज में एवं कॉपोरेट संस्कृति में काम कर समझ आया की लोग अपना हित करने लिए किसी दूसरे व्यक्ति की भावनाओ से खेलने में बिलकुल भी नहीं संकोच नहीं करते , मेरे कहने का तात्पर्य यह हैं की इस समाज में ऐसे लोग भी हैं जिनको दुसरो को दुःख देकर खुसी मिलती हैं एवं वह किसी न किसी माध्यम से अपने सामने वाले व्यक्ति को नीचा साबित करना चाहते हैं , ऐसे महापुरुष समाज के हर कोने में उपास्थि हैं उनको पहचान लेना एवं खुद को उनके विचारों एवं ज्ञान की चतुर्मुखी आभा से दूर रखना अत्यंत आवश्यक हैं |